मेष राशि: इस राशि के लोग बेचैन रहेंगे। अनावश्यक क्रोध और वाद-विवाद से बचें। हर काम में माता-पिता का सहयोग प्राप्त होगा, परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
वृष राशि: इस राशि के जातकों के मन में आशा-निराशा के भाव उत्पन्न हो सकते हैं। नौकरी और कार्य क्षेत्र में भी बदलाव के योग बनते हैं। कला या संगीत के प्रति आपका रुझान बढ़ सकता है।
मिथुन राशि: इस राशि के लोग आत्मविश्वास से भरे रहेंगे। धैर्य रखें, व्यवसायिक स्थिति काफी संतोषजनक रहेगी। आप किसी यात्रा पर जा सकते हैं।
कर्क राशि: इस राशि के जातकों का मन परेशान रहेगा, आत्मविश्वास में कमी आ सकती है. माता-पिता के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
सिंह राशि: इस राशि के जातकों का मन प्रसन्न रहेगा, आत्मविश्वास भी भरपूर रहेगा, पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। व्यापार में वृद्धि हो सकती है। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है।
कन्या राशि: मन में शांति और प्रसन्नता बनी रहेगी, आत्मविश्वास भी भरपूर रहेगा. व्यापार में विस्तार के योग हैं, व्यापार में भागदौड़ अधिक रहेगी।
तुला राशि: इस राशि के जातकों की वाणी में सौम्यता रहेगी। आत्मविश्वास भी भरपूर रहेगा। बेकार के वाद-विवाद से बचें, सेहत का विशेष ध्यान रखें।
वृश्चिक राशि: इस राशि के जातकों का मन अशांत रहेगा। वाद-विवाद से बचें, परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। नौकरी बदलने के योग भी बन रहे हैं।
धनु राशि: इस राशि के जातकों के मन में निराशा रहेगी, धैर्य में कमी आ सकती है. परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान पर जा सकते हैं, खर्चा बढ़ेगा।
मकर राशि: इस राशि के जातकों का मन प्रसन्न रहेगा, आत्मविश्वास में वृद्धि होगी. बेवजह के गुस्से से बचें, माता-पिता के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें।
कुंभ राशि: इस राशि के जातक आत्मविश्वास से भरे होंगे, फिर भी उनके मन में नकारात्मकता आ सकती है। वाणी के प्रभाव में वृद्धि होगी। किसी मित्र के सहयोग से व्यवसाय के नए अवसर मिल सकते हैं।
मीन राशि: इस राशि के जातकों के मन में शांति बनी रहेगी। पठन-पाठन कार्य में रुचि बढ़ेगी, मान-सम्मान की प्राप्ति होगी।
कई वर्षों बाद ऐसा योग बन रहा है, जब नव वर्ष के दिन रविवार है। ऐसे में जातकों को नए साल की शुरुआत सूर्य भगवान की पूजा के साथ करनी चाहिए। वैसे कई जातक प्रतिदन सूर्य देवता की पूजा करते हैं, लेकिन कई बार आराधना करते वक्त गलतियां हो जाती है। यदि आप सूर्य देव की कृपा पाना चाहते हैं, तो आपको पूजा करने का सही तरीका पता होना चाहिए। रवि को अर्ध्य देने के अलावा मंत्र का जाप भी करना चाहिए। आइए जानते हैं सूर्य देव की पूजा करने का सही तरीका क्या है।
सूर्य देव की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में करना शुभ होता है। सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें। अब तांबे के लौटे में जल, अक्षत, हल्दी और लाल फूल मिलाकर सूर्यदेव को अर्पित करें। फिर गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
तांबे को सूरज का धातु माना गया है। आपको इससे ही जल अर्पित करना चाहिए। मान्यता है कि सूर्य को जल चढ़ाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
सूर्योदय के समय सूरज को प्रणाम करना प्रगति की निशानी है। हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है। वैदिक शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। वहीं रविवार के दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करना चाहिए।
सूर्य देव की कृपा पाने के लिए प्रतिदिन सूर्य चालीसा का पाठ करना चाहिए। इससे आपकी सारी इच्छा पूरी होगी। वहीं स्वास्थ्य भी अच्छा बना रहेगा।
कनक बदन कुंडल मकर,मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए,शंख चक्र के संग॥
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर,सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर॥
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र, मरीचि, भानु,अरुण, भास्कर,सविता,सूर्य, अर्क,
खग, कलिहर, पूषा,रवि,आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै॥
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार,यहविधि हरिहर कौ कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते,सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन,रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है,प्रबलमोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते,रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत,कर्ण देश पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वास करहु नित,भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे,रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा,तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर,त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन,भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर,कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति, सविता बासा,गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी,बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै,रक्षा कवच विचित्र विचारे।
अस जोजजन अपने न माहीं,भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं॥
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै,जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता,नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मन्द सदृश सुतजग में जाके,धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों॥
परम धन्य सो नर तनधारी हैं,प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,मध वेदांगनाम रवि उदय॥
भानु उदय वैसाख गिनावै,ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता,कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं,पूसहिं पुरुष नाम रवि हैं,मलमासहिं॥
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत,गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध,होंहि सदा कृतकृत्य।।
डिसक्लेमर
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