Uttarakhand News 04 March 2025: सिस्टम की नाकामी की जरा सी बानगी देखिए। आजादी के 77 साल बाद भी चंपावत जिले के सीमांत मरथपला गांव तक सड़क नहीं पहुंची है। इससे मरीजों और गर्भवती महिलाओं को बेजान की तरह लाठी-डंडे में बांधकर मोटर मार्ग तक लाना और ले जाना पड़ रहा है।

ताजा मामला मरथपला गांव की 70 वर्षीय चंचला देवी का है। वह गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं। अस्पताल से इलाज कराने के बाद मंच से गांव तक (लगभग 15 किलोमीटर) डंडे और चादर से बनाई गई डोली (एंबुलेंस) के सहारे घर लाया गया।

जिले के सीमांत क्षेत्र मंच तक ही सड़क है, जिसकी वजह से छह से लेकर 15 किलोमीटर दूर तक मरथपला गांव हो या बकोड़ा गांव के बीच निवास करने वाली 1500 से लेकर 2000 तक की आबादी परेशान है। ग्रामीण संजय सिंह, अर्जुन सिंह, रविंद्र सिंह ने बताया कि सड़क तक मरीज को ले जाने और लाने में ही पांच से छह घंटे लग जाते हैं। ग्राम पंचायत बकोड़ा के प्रशासक महेंद्र रावत ने बताया कि सड़क की गुहार लगाते-लगाते थक गए हैं अब तो इसे नियति मान लिया है। सामर्थ्यवान ताे गांव छोड़कर शहर चले गए जबकि लाचार ग्रामीण आज भी मुसीबत झेलने के लिए विवश हैं।

सड़क नहीं होने से बढ़ा पलायन
लोक निर्माण विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 800 से ज्यादा गांवों तक सड़क नहीं पहुंची है। कई गांवों की तरह मंच बकोड़ा सड़क का भी सर्वे कई बार हो चुका है लेकिन वर्षों से यह रोड फाइलों पर बन और बिगड़ रही है। ग्रामीणों का कहना है कि जहां पहले गांव में लोग खेती करते थे, आज वहां की भूमि बंजर पड़ी है। सड़क के अभाव में लोग अपनी माटी और पुरखों का घर छोड़ रहे हैं।

सीमांत तल्ला देश के मंच -बकोड़ा सड़क के लिए सर्वे हो चुका है, लेकिन वन भूमि नहीं मिलने के कारण मामला लटका है। पूर्व में सड़क निर्माण के बदले जिस भूमि का चयन किया गया था, उसे लेकर केंद्र की आपत्ति आई थी। अब नई भूमि की तलाश की जा रही है।