Uttarakhand News 8 August 2025: पांच अगस्त को दोपहर में अपने बेटे से फोन पर बात होने के बाद से नेपाल के विजय और उनकी पत्नी काली देवी बेचैन हैं। उनके बेटे ने फोन पर कहा था, पापा हम बचेंगे नहीं, नाले में बहुत पानी आ गया है। इसके बाद से उनका अपने बच्चों और अन्य साथियों से संपर्क नहीं हो पाया है।
विजय और काली देवी भटवाड़ी हेलीपैड पर बैठकर अधिकारियों और वहां मौजूद लोगों से लगातार यह गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें हेलिकॉप्टर से धराली ले जाया जाए ताकि वे अपने लापता बच्चों की तलाश कर सकें। विजय ने बताया कि धराली आपदा के बाद से उनके छह बच्चे और 26 अन्य साथी लापता हैं।
सब कुछ खत्म हो गया
धराली आपदा ने हर किसी को गहरे जख्म दिए हैं। किसी का परिवार बिखर गया तो कई परिजनों के जिंदा होने की उम्मीद लगाए बैठा है। धराली आपदा में अपना सब कुछ खो चुके होटल व्यवसायी भूपेंद्र पंवार की आंखों में आंसू हैं। उन्होंने बताया कि किस तरह से अप्रैल में ही जीवन भर की कमाई लगाकर यहां एक होम स्टे स्थापित किया था। उस समय लगा था कि सपना पूरा हो गया है, लेकिन किसे पता था कि महज पांच महीनों में कुछ ही सेकंड में वह सब कुछ उनकी आंखों के सामने तबाह हो जाएगा। बताया कि सीटियों की आवाज सुनकर वह और उनके साथ मौजूद चार अन्य लोग तेजी से भागे, अगर दो सेकंड देर हो जाती तो मलबे में कहीं खो जाते।
मेले में जाने की तैयारी कर रहे थे
भूपेंद्र ने संवाद न्यूज एजेंसी से बातचीत में बताया, हम खीरगंगा के तेज बहाव के आदी थे, लेकिन इस बार जो भयानक रूप हमने देखा, वह तीन दिन बाद भी समझ से बाहर है। 5 अगस्त की दोपहर मैं गांव के अन्य लोगों के साथ होटल के बाहर खड़ा था। हम मेले में जाने की तैयारी कर रहे थे। तभी सामने मुखबा गांव से भागो-भागो की आवाजें और सीटियां सुनाई दीं।
यह सुनते ही हम पांच लोग तुरंत हर्षिल की ओर भागे और हमारे पीछे एक कार चालक भी अपनी जान बचाने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा था। बस दो या तीन सेकंड का फर्क था वरना हम भी उस प्रलय में कहीं खो गए होते। इसके बाद मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को फोन किया और बताया कि मैं तो सुरक्षित हूं लेकिन सब कुछ खत्म हो गया। इसके बाद नेटवर्क भी चला गया।
लगा जैसे मैं अपने ही लोगों पर बोझ बन गया हूं
भूपेंद्र पंवार ने बताया कि सब कुछ खोने के बाद तीसरे दिन भी गांव के अन्य लोगों ने खाना दिया। मेरे कपड़े मलबे में दब गए थे, इसलिए पहनने के लिए टी-शर्ट और पजामा भी दूसरों से मांगना पड़ा। ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने ही गांव के लोगों पर बोझ बन गया हूं। वहीं, उत्तरकाशी में मेरी पत्नी और बच्चे भी परेशान थे। मैं पैदल चलकर मुखबा पहुंचा और वहां से हेलिकॉप्टर के जरिये उत्तरकाशी आया।







