Uttaranchal News, 17 november 2022 : गुजरात के मोरबी में हुई घटना को हुए 20 दिन से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन आज भी घटनास्थल पर न जाने कितने लोग अपनों को ढूंढते हुए पहुंच रहे हैं। कोई अपनी छोटी बेटी को ढूंढते हुए पुल के मलबे के पास पहुंच रहा है, तो कोई अपनी पत्नी और कोई पति और बच्चे के गम में अभी भी उस जगह पहुंच रहे हैं और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोगों ने बताया कि हर रविवार सैकड़ों लोग अपनों की याद में अभी यहां पहुंच रहे हैं। मोरबी पुल पर मौजूद सुरक्षाकर्मी कहते हैं कि यहां पर जो मलबा पड़ा है उसे देखकर लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। वह बताते हैं कि पिछले इतवार को ही यहां इतनी भीड़ थी कि अतिरिक्त सुरक्षा बल बुलाना पड़ा था। उनका कहना है कि भीड़ बेकाबू नहीं थी, लेकिन लोग बेहद भावुक थे, जो उस पुल के मलबे के पास आकर रो रहे थे। उन्होंने बताया कि मोरबी के पास स्थित जगाधा गांव के शंभू गुप्ता की सात साल की बेटी और उनकी पत्नी की डूबने से मौत हो गई। वह कहते हैं कि शंभू की मानसिक दशा का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि वह बीते कई दिनों से लगातार यहां पर आते हैं और मलबे को देखकर फूट-फूट कर रोते हैं। इस पुल के नीचे ही बनी झोपड़पट्टी में रहने वाले सुनील बताते हैं कि उन्होंने स्थानीय नगरपालिका से गुजारिश की है कि इस मलबे को कहीं दूसरी जगह पर स्थानांतरित करा दिया जाए या इसे नष्ट कर दिया जाए। ताकि लोग पुल के टूटे मलबे को देखकर विचलित ना हों। सुनील बताते हैं कि यहां आने वाले ज्यादातर लोग वही होते हैं, जिनके अपने इस पुल के टूटने के बाद इस दुनिया में नहीं रहे। उनका कहना है कि यहां पर सुरक्षा के लिए तो सिक्योरिटी गार्ड तो बैठे हुए हैं, लेकिन ध्वस्त हो चुके पुल के मलबे को देखकर अभी भी लोग अपने आंसू नहीं रोक पा रहे हैं। मच्छू नदी के दूसरी ओर यहां के राजघराने का शाही महल है। मोरबी का यह हैंगिंग ब्रिज शाही महल और यहां के इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता था। शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमृतलाल कहते हैं कि पुल उसी दिन खुला था। उनके परिवार के कुछ बच्चे भी पुल पर पहुंचे थे। लेकिन भीड़ देखकर वो तो वापिस आ गए, लेकिन उनके कुछ दोस्त वहीं रह गए। वह कहते हैं कि उनके परिवार के बच्चे अभी भी रात भर रोते हैं कि वह अपने दो दोस्तों को क्यों नहीं वापिस लाए थे।

इलाके के रहने वाले स्थानीय पत्रकार प्रवीण कहते हैं कि जो पुल का मलबा पड़ा हुआ है, उसे हटाया जाना चाहिए। क्योंकि लोग अभी अभी पुल के उस रैंप को देखने जाते हैं, जो टूट कर गिर गया था। स्थानीय मानवाधिकार संगठन से जुड़े हसमुख मेहता कहते हैं कि मोरबी में ऐसा कोई भी घर नहीं है, जो इस वक्त दुखी ना हो। मेहता का कहना है कि आज भी लोग अपनों की याद में मच्छु नदी के इस पुल की ओर आते हैं।