Uttarakhand News 30 Nov 2024: Ajmer Dargah अजमेर दरगाह को लेकर राजनीति चरम पर है। दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। इसको लेकर निचली अदालत में एक याचिका भी डाली गई, जिसपर कोर्ट सुनवाई के लिए राजी हो गया। जिसके बाद से राजनीतिक बहस छिड़ गई है, क्योंकि मथुरा, वाराणसी और धार में मस्जिदों और दरगाहों पर इसी तरह के दावे किए गए हैं।
कोर्ट सुनवाई को राजी
अजमेर की एक सिविल अदालत बुधवार को अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचक महादेव मंदिर होने से जुड़ी याचिका को स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। सिविल न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 20 दिसंबर जारी की है।
अदालत में हिंदू सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सरिता विहार निवासी विष्णु गुप्ता ने वकील शशि रंजन कुमार सिंह के माध्यम से 26 सितम्बर को याचिका दायर की गई थी।
भाजपा ने कोर्ट का किया समर्थन
कोर्ट के इस फैसले की विपक्षी नेताओं ने तीखी आलोचना की है। विपक्ष ने कहा कि कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर दरगाह पर चादर भेजी थी, तो अब क्या हुआ। उधर, भाजपा के नेताओं ने दावा किया है कि इस तरह के विवादित ढांचे के नीचे मंदिरों की मौजूदगी की जांच करने का निर्णय उचित है।
सर्वे से क्या समस्या: गिरिराज सिंह
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा अजमेर में न्यायालय ने सर्वेक्षण का आदेश दिया है। अगर न्यायालय ने सर्वेक्षण का आदेश दिया है तो इसमें क्या समस्या है? यह सच है कि जब मुगल भारत आए, तो उन्होंने हमारे मंदिरों को ध्वस्त कर दिया। कांग्रेस सरकार ने अब तक केवल तुष्टिकरण किया है। अगर (जवाहरलाल) नेहरू ने 1947 में ही इसे रोक दिया होता, तो आज न्यायालय जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
पूजा स्थल अधिनियम पर बवाल
दरअसल, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत अयोध्या को छोड़कर, देश भर में धार्मिक संरचनाओं पर 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति बनाए रखने का कानून बना है।
लेकिन 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण की अनुमति दी थी, जिसमें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने तर्क दिया था कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता है।
महबूबा मुफ्ती बोलीं इससे विवाद बढ़ेंगा
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा कि इस मामले से विवाद बढ़ सकता है। उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा भी ऐसे फैसले का सीधा परिणाम थी। मुफ्ती ने आगे कहा कि देश के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बदौलत एक भानुमती का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यक धार्मिक स्थलों के बारे में विवादास्पद बहस छिड़ गई है।
कपित सिब्बल ने जताई नाराजगी
राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने एक्स पर एक पोस्ट से कोर्ट के फैसले से खासी नाराजगी जताई। सिब्बल ने कहा, ‘अजमेर दरगाह में शिव मंदिर… हम इस देश को कहां ले जा रहे हैं? और क्यों? राजनीतिक लाभ के लिए!’
क्या बोले ओवैसी?
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का पालन किया जाता है, तो देश संविधान के अनुसार चलेगा।
अजमेर दरगाह का इतिहास
बता दें कि ईरान (फारस) के एक सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना घर बनाया था और मुगल सम्राट हुमायूं ने उनके सम्मान में एक दरगाह बनवाई थी। उनके पोते, सम्राट अकबर हर साल अजमेर की तीर्थयात्रा करते थे। अकबर और उनके पोते शाहजहां ने अजमेर दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाई थीं।