Uttarakhand News 24 July 2025: लालकुआं। मोटाहल्दू का बकुलिया गांव जो कल तक बच्चों की हंसी और शरारतों से गूंजता था, जो आज एक गहरे सन्नाटे में डूबा है। ऐसा होना लाजमी भी था। दो मासूम अंकित और कृष की हंसी हमेशा के लिए खामोश जो हो गई।

दोनों दोस्त एक ही स्कूल में पढ़ते थे, एक ही गली में खेलते थे, एक साथ तालाब की ओर गए, लेकिन नियति ने उन्हें गांव की उन गलियों में कभी लौटने न दिया। उनकी मौत ने हर आंख को नम कर दिया, हर दिल को भारी कर दिया। मंगलवार को गांव में भजन-कीर्तन की मधुर धुनें गूंज रही थीं।

भंडारे की रौनक में हर कोई भगवान से खुशहाली की दुआ मांग रहा था। बच्चे हंसते-खेलते गलियों में दौड़ रहे थे। लेकिन अचानक अंकित और कृष के लापता होने की खबर ने ग्रामीणों की सांसें थाम दीं। जो जैसा था वैसे ही बच्चों की तलाश में दौड़ पड़ा।

ग्रामीण और पुलिस रातभर उनकी तलाश में जुटे रहे। हर संभावित रास्ता छान मारा। हर कोई प्रार्थना कर रहा था कि बस दोनों बच्चे सकुशल मिल जाएं। लेकिन भोर की पहली किरण में अंकित के शव मिलने की सूचना के साथ ही एक ठंडी सिहरन ने गांव को जकड़ लिया।

दोपहर को कृष के शव के मिलने के बाद गांव का सन्नाटा और अधिक गहरा गया। शाम को दोनों की अर्थियां रानीबाग को रवाना हुई तो बादल गरजने लगे, मानो आसमान भी रो उठेगा। बच्चों की साइकिलें घर के आंगन में खड़ी थीं। स्कूल का बस्ता कोने में पड़ा था, जिसमें अधूरी कापियां और सपनों की किताबों के पन्ने बंद थे। गांव का हर बच्चा, हर बुजुर्ग, हर मां बाप सदमे में था।

आंसुओं का सैलाब, टूटे दिलों की चीखें
अंकित के घर में मातम छाया है। दीवान सिंह और गीता देवी का चिराग अंकित उनकी दुनिया का सूरज था। गीता की आंखों से आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा। बार-बार बेहोश हो रही मां को देखकर पड़ोसियों का दिल पसीज रहा है। सात साल की मासूम प्राची अपने भैया अंकित की राह देख रही थी।

भीड़ में भटकती उसकी मासूम आंखें बार-बार पूछ रही हैं, मम्मी भैया कहां हैं? इतने लोग आए हैं, पर भैया क्यों नहीं दिख रहे? उसकी मासूमियत हर किसी का कलेजा चीर रही है। कोई कैसे बताए कि उसका भैया अब कभी नहीं आएगा?

उधर, मोटाहल्दू में फास्ट फूड की छोटी-सी दुकान चलाने वाले दरबान सिंह तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठे हैं। उनकी आंखें खामोश हैं, लेकिन चेहरा एक अनकही त्रासदी की कहानी कह रहा है। उनका लाडला कृष हल्का हल्का तैरना जानता था, जिसकारण पिता के सीने में उम्मीद की लौ जलाए रखी थी। दरबान सिंह शायद मन ही मन भगवान से यही गुहार लगा रहे थे। मेरा बेटा डरकर कहीं छिपा होगा, भगवान उसे बचा ले।

घर में कृष की मां खष्टी देवी कोने में बैठकर बेटे की सलामती की दुआ मांग रही थीं। बड़े भाई लक्षित और बहन करीना मां को ढांढस बंधा रहे थे। मम्मी, भैया जल्दी आ जाएंगे। लेकिन नियति ने उनके सारे अरमानों को तालाब के ठंडे पानी में डुबो दिया। दोपहर को जब कृष का नन्हा शरीर तालाब से निकाला गया, तो दरबान सिंह की खामोशी टूट गई। उनके आंसुओं का सैलाब, खष्टी देवी की करुण पुकार और भाई-बहन की चीखों ने गांव की हवा को और भारी कर दिया।