उत्तराखंड का पर्व ‘घी त्यार’: उत्तराखंड अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। ऐसा ही पारंपरिक उत्सव घी संक्रांति भी है। कुमाऊं मंडल में इस पर्व को ‘घी त्यार’ और गढ़वाल मंडल में ‘घी संक्रांति’ के नाम से जानते हैं। कृषि, पशुधन और पर्यावरण पर आधारित इस पर्व को लोग धूमधाम के साथ मनाते हैं।
घी संक्रांति का खास महत्व:
घी त्यार (घी संक्रांति) देवभूमि उत्तराखंड में सभी लोक पर्वों की तरह प्रकृति एवं स्वास्थ्य को समर्पित पर्व है। पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना की जाती है। अच्छे स्वास्थ के लिए, घी एवं पारम्परिक पकवान हर घर में बनाए जाते हैं। उत्तराखंड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है। लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जो इस दिन घी नही खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है। इसलिए लोग इस पर्व के लिए घी की व्यवस्था पहले से ही करके रखते हैं।
घी त्यार (लोकपर्व) पर प्रत्येक घरों में पुए, पकौड़े और खीर बनाई जाती है। इन पकवानों को घी के साथ परोसा जाता है।
अतुलनीय संस्कृति और विरासत
उत्तराखंड राज्य पूरे विश्व में अपनी कला और लोक संस्कृति के नाम से जाना जाता है। यूं तो यहां हर पर्व अपने आप में खास होता है। लेकिन कुछ पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं। इसलिए उनका महत्व और बढ़ जाता है। प्रदेश में सुख, समृद्धि और हरियाली का प्रतीक माना जाने वाला घी त्यार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। उत्तराखंड में घी संक्रांति का विशेष महत्व है। इसे भाद्रपद की संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे भद्रा संक्रांति भी कहते हैं।