उत्तराखंड के कई गांव इस समय पलायन की मार झेल रहें हैं, जिस कारण गांव के गांव खाली हो गए हैं। पलायन को रोकने के लिए उत्तराखंड सरकार जल्द ही एक पंचवर्षीय योजना लाने जा रही है।
इस योजना का नाम मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना है। इस योजना में पलायन प्रभावित प्रत्येक गांव के लिए पांच साल की योजना तैयार की जाएगी। अपर मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने बुधवार को हुई योजना की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को इसके निर्देश दिए। साथ ही सप्ताहभर के भीतर इस बारे में सुझाव देने को कहा।
पलायन का मुख्य कारण पहाड़ के गांवों में आजीविका व रोजगार के अवसर न होना है। बेहतर भविष्य की आस में लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं। ठीक है, गांव में सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, लेकिन रोजगार, स्वरोजगार के अवसर तो सृजित हो सकते हैं। इसके लिए विभिन्न स्वरोजगारपरक योजनाओं का लाभ युवा उठा सकते हैं, लेकिन इसको कौशल विकास पर ध्यान देना होगा। छोटे-छोटे उद्यमों को बढ़ावा देने के साथ ही यहां की परिस्थितियों के अनुसार खाद्य प्रसंस्करण जैसी इकाइयां स्थापित हो । स्वरोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर सृजन को तंत्र को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा। उद्यम स्थापना को प्रक्रियागत खामियां दूर कर इनका सरलीकरण करना होगा।
अपर मुख्य सचिव ने बैठक में कहा कि मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना में प्रतिवर्ष 20 करोड़ रुपये की राशि तो पलायन प्रभावित गांवों में खर्च की जा रही है, लेकिन यह देखा जाना आवश्यक है कि इसका क्या फायदा है।
इसके अंतर्गत कितने लोग वापस गांव लौटे, खेती कितनी बढ़ी जैसे बिंदुओं की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि योजना में सीमित बजट को देखते हुए भले ही गांव कम शामिल हों, लेकिन प्रत्येक गांव के लिए पांच वर्ष की योजना बननी चाहिए।