Uttaranchal News, उत्तराखंड, 19 अक्टूबर 2022: राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) से DLED (Diploma in Elementary Education) कर चुके उम्मीदवारों को 2648 पदों पर चल रही शिक्षक भर्ती में शामिल करने या न करने के मामले में सरकार कोई निर्णय लेती, उससे पहले ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उत्तराखंड के पूर्व महाधिवक्ता उमाकांत उनियाल ने प्रकरण में BEd उम्मीदवारों की ओर से SLP दाखिल कर दी है।

प्रदेश में शिक्षक भर्ती के लिए NIOS से DLED अभ्यर्थियों को पहले शिक्षक भर्ती में शामिल करने और बाद में सरकार के अपने ही निर्णय को पलटे जाने के खिलाफ अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए थे। लगभग एक महीने पहले हाईकोर्ट इन अभ्यर्थियों को शिक्षक भर्ती में शामिल करने का फैसला सुना चुका है।

हाईकोर्ट के इस फैसले पर अमल किया जाए या फिर इसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएं, सरकार इस पर विचार कर रही है। प्रकरण में विधि विभाग से राय ली जा रही है, लेकिन इससे पहले की सरकार इस मसले पर कोई कदम उठाती, मंगलवार को BEd TET अभ्यर्थी हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए।

राजनीतिक मुद्दा बन गया
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता उमाकांत उनियाल की ओर से इस मामले में SLP दाखिल की गई है। उनियाल ने कहा कि NIOS से DLED मामले में NCTE की ओर से कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई थी। इनके मामले में केवल सर्कुलर जारी किया गया था।

अपात्र होने की वजह से उत्तर प्रदेश में इन लोगों को भर्ती से बाहर कर दिया गया था। जो राजनीतिक मुद्दा बन गया था। उन्होंने कहा कि यह निजी स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षक थे। जिन्हें 31 मार्च 2019 तक एक बार 18 महीने के सेवारत प्रशिक्षण का अवसर दिया गया था। पूर्व महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार जब एक बार शिक्षक भर्ती शुरू कर चुकी है तो बीच में भर्ती के लिए शैक्षिक योग्यता को बदला नहीं जा सकता।

यह है मामला
प्रदेश के राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए शिक्षा विभाग ने वर्ष 2020-21 में 2648 पदों के लिए आवेदन मांगे थे। शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों से DLED और BEd अभ्यर्थियों के साथ ही NIOS से DLED करने वालों ने भी इसके लिए आवेदन किए थे। सरकार ने NIOS से DLED अभ्यर्थियों को पहले शिक्षक भर्ती में शामिल किया और बाद में इन्हें शिक्षक भर्ती में शामिल न करने का निर्णय लिया गया। इसके खिलाफ अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने शासन के इन्हें भर्ती में शामिल न करने के 10 फरवरी के आदेश को रद्द कर दिया था।